हरिद्वार में संतों की संस्था अखिल भारतीय दशनाम संन्यासी परम आदर्श आचार्य महामंडलेश्वर समिति ने वर्ष 2021 में होने वाले हरिद्वार कुंभ को 2022 में कराने की मांग उठाई है। समिति ने देशभर के सभी प्रमुख संतों और सरकारों को पत्र लिखकर यह सुझाव दिया है। वहीं, समिति से जुड़े संत देशभर में अपनी इस मुहिम के लिए समर्थन जुटा रहे हैं। हालांकि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने मुहिम को अनावश्यक बताते हुए इससे किनारा कर लिया है और हरिद्वार कुंभ 2021 में ही होने की बात कही है।
समिति के उपाध्यक्ष स्वामी महेश्वरानंद पुरी महाराज की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया कि प्रारंभ से ही कुंभ का काल 12 साल के अंतराल पर आता है। पौराणिक महत्व के हिसाब से हमेशा कुंभ 12 साल में ही कराए जाने की परंपरा है, लेकिन वर्ष 1955 में स्वामी करपात्री महाराज के नेतृत्व में संतों के एक वर्ग ने ज्योतिषशास्त्र की कुछ गणनाओं के आधार पर घोषणा की थी कि उज्जैन कुंभ इस बार वर्ष 1957 की बजाय वर्ष 1956 में होगा।
काशी स्थित संन्यासी संस्कृत कॉलेज के मंत्री स्वामी धर्मानंद के नेतृत्व में विद्वानों समेत सभी अखाड़ों और साधु समाज ने उनका विरोध करते हुए वर्ष 1957 में ही कुंभ होने की मान्यता दी थी। लंबे विवाद के बीच तत्कालीन प्रशासन करपात्री महाराज और उनके साथी संतों के दबाव में झुक गया था और वर्ष 1956 में उज्जैन का कुंभ कराया गया, लेकिन जनता ने इसे नकार दिया था। यह कुंभ कुछ हजार लोगों की भीड़ तक सिमट गया। ऐसे में 1957 में दोबारा कुंभ कराना पड़ा।
इसके बाद भी कई बार कुंभ को लेकर विवाद पैदा करने की कोशिश की गई। पत्र में कहा गया है कि इस बार फिर ज्योतिष गणना के आधार एक वर्ष पूर्व ही कुंभ 2021 में कराने का प्रयास हो रहा है, लेकिन कोरोना जैसी बाधा आने से यह प्रयास विफल होने लगा है। कोरोना के चलते जो परिस्थितियां बनी हैं, उनके कारण न तो कुंभ की तैयारी पूरी हो सकेगी और न ही श्रद्धालु आएंगे। ऐसे में वर्ष 2021 में तो कुंभ हो ही नहीं सकता।
उन्होंने केंद्र सरकार, सभी राज्य सरकारों, अखाड़ों, धार्मिक सांस्कृतिक, सामाजिक संस्थाओं, सनातन धर्म के सभी अनुयायियों से अपील की है कि सर्वसम्मति से निर्णय लेकर कुंभ 2022 में कराने का निर्णय लें। समिति के महामंत्री स्वामी विश्वात्मानंद पुरी महाराज ने बताया कि समिति से जुड़े सभी संत इस प्रस्ताव से सहमत हैं। कुंभ हमेशा 12 साल के अंतराल पर होना चाहिए।
कुंभ मेले का आयोजन वर्ष 2021 के बजाय 2022 में कराने की कवायद को लेकर सोशल मीडिया पर भी मुहिम शुरू कर दी गई है। सामाजिक कार्यकर्ता अमित पंजवानी और उनके साथियों ने ऑनलाइन प्रस्ताव डालकर देशभर से इस मुहिम के लिए समर्थन जुटाना शुरू कर दिया है। उनके प्रयास को लोग समर्थन भी दे रहे हैं। इनका तर्क है कि वैसे भी कुंभ हमेशा 12 साल बाद ही होता है। पिछला कुंभ हरिद्वार में वर्ष 2010 में हुआ था। इसलिए इस बार 2022 में होना चाहिए।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि महाराज ने समिति की इस मुहिम को औचित्यहीन बताते हुए कहा कि कुंभ के बारे में कोई भी निर्णय लेने का अधिकार केवल अखाड़ा परिषद को है। परिषद ने इस समिति को मान्यता नहीं दी है। उन्होंने कहा कि कुंभ के आयोजन का पौराणिक गणित है, जिसके हिसाब से कुंभ 2021 में ही होगा। अभी बहुत समय है। सरकार भव्य कुंभ के आयोजन की तैयारी करने में सक्षम है।
हरिद्वार कुंभ के कार्यों को लेकर जिले के भाजपा के दो विधायक सुरेश राठौर और देशराज कर्णवाल भी सवाल उठा चुके हैं। सुरेश राठौर का कहना है कि कोरोना के कारण कुंभ में बहुत कम श्रद्धालु पहुंचेंगे। इसलिए सरकार को और ज्यादा बजट जारी नहीं करना चाहिए, केवल स्थायी काम पूरा करें। विधायक देशराज कर्णवाल ने भी यही मांग उठाई थी।
हरिद्वार में कुंभ के काम करीब दो साल पहले शुरू हुए थे। कुंभ के लिए राज्य सरकार ने करीब 1200 करोड़ रुपये का बजट खर्च करने की योजना बनाई थी। इसमें से केंद्र सरकार 300 करोड़ रुपये दे चुकी है। लॉकडाउन शुरू होने से पहले सभी स्थायी कार्य तेजी से शुरू कर दिए गए थे। लॉकडाउन के कारण करीब दो महीने तक कुंभ के सारे काम रुके रहे। अब जो काम दोबारा शुरू हुए, उसमें अधिकांश स्थायी हैं। कुंभ मेल प्रशासन का भी अभी स्थायी कार्यों पर ही ज्यादा फोकस है।
Source: Amar Ujala